Translate

शनिवार, 1 दिसंबर 2007

समझौता

गाँव से आया एक परिवार,
सड़क के किनारे,
घर बसा, खुदा से दुआ मांग रहा था।
कल तक गाँव में जो लड़की,
लगती थी आँखों को प्यारी,
शहर में आते ही लगी थी खटकने,
कल तक जो बच्ची लगती थी,
आज लगने लगी थी बड़ी,
पर लाचार हो चुपचाप था,
सुबह कब हुई, पता ही नहीं चला,
सामने लड़की चाय लिये खड़ी थी,
अब्बा ! चाय पी लो !
उसकी आँखों में शर्म,
और मेरी आँखों में लाचारी
दोनों ने एक दूसरे से समझौता कर लिया था।
उसने भी अपनी आँखें छुपा ली,
मैंने भी अपनी आँखें झूका ली
- शम्भु चौधरी

0 विचार मंच:

हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा

एक टिप्पणी भेजें