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शनिवार, 17 अगस्त 2013

प्रधानमंत्री जी का लालकिले से भाषण- शम्भु चौधरी

जिस प्रकार देश के जाने-माने बुद्धिजीवी वर्ग की एक जमात जिसमें श्री लालकृष्ण आडवाणी सहित कुछ राजनीति दल के लोग भी शामिल हैं श्री मोदी जी के भाषण को लेकर जिस परंपरा की दुहाई दे रहें उनसे एक सीधा सा सवाल है कि क्या वे बतायेंगे कि लालकिले के जिस मंच से माननीय प्रधानमंत्री जी ने जो भाषण दिया वो देश के एक प्रधानमंत्री का भाषण होना चाहिए था? यदि आप में जरा भी देश भक्ति का जज्बा बचा होगा तो कदापि इस बात से आप भी सहमत नहीं होंगे। दुर्भाग्य है कि हमलोगों की नियति सी बन गई है कि हम व्यक्तिगत स्वार्थ की राजनीति को देश से बड़ा मानने लगे हैं।

जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी 67वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले से देश को संबोधित कर रहे तो इसके पूर्व हमलोगों के दिमाग में एक कल्पना सी थी कि देश के प्रधानमंत्री देश के भविष्य, बढ़ती मंहगाई, भ्रष्टाचार, महिलाओं की सुरक्षा, लोकपाल बिल, रुपये के गिरते मूल्य की चिन्ता, देश की अर्थव्यवस्था व देश की सुरक्षा के खतरे से देश को आगाह करते हुए चीन और पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने का प्रयास करेंगे। आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने इन सभी बातों को ना सिर्फ जिक्र तक नहीं किया, अपनी नौ साल की सरकार के सारी काली करतूतों पर पर्दा डालते हुए उन्होंने गांधी परिवार के सामने सर झूकाकर अपना आभार व्यक्त करते हुए स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश के अभी हाल ही में हुए हमारे सैनिकों को श्रद्धांजलि भी देने की जरूरत महसूस नहीं की। देश के शहिदों को याद करने की बात तो बहुत दूर की उन्होंने पाकिस्तानियों द्वारा देश में फैलाये जा रहे सांप्रदायिक दंगों तक का भी जिक्र अपने भाषण में नहीं किया। कुल मिलाकर इनके भाषण का सार इस बात से लगाया जा सकता है कि इनका भाषण देश के उस प्रधानमंत्री का नहीं जो देश की आजादी के लिए मर मिटने वालों शहीदों की कुर्बानियों को याद करता हो। इन्होंने इस मंच का प्रयोग खुद के एहसान को चुकाने के लिए व सोनिया और गांधी परिवार के कर्ज का फर्ज अदा करने के लिए किया है।

जब हम देश के प्रधानमंत्री जी को 67वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले से भाषण देते सुन रहे थे तब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानों कोई मुर्दा देश की बागडोर पर बैठकर देश को संबोधित कर रहा हो । इनके भाषण में जो तीन प्रमुख हिस्से थे

1. गांधी परिवार को संस्मरण कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करना

2. अपने पिछले चार साल के भ्रष्ट कार्यकाल की उपलब्धियों को छुपाये रखना एवं

3. अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिए देश को गुमराह करना।

जिसप्रकार देश के जाने-माने बुद्धिजीवी वर्ग की एक जमात जिसमें श्री लालकृष्ण आडवाणी सहित कुछ राजनीति दल के लोग भी शामिल हैं श्री मोदी जी के भाषण को लेकर जिस परंपरा की दुहाई दे रहें उनसे एक सीधा सा सवाल है कि क्या वे बतायेंगे कि लालकिले के जिस मंच से माननीय प्रधानमंत्री जी ने जो भाषण दिया वो देश के एक प्रधानमंत्री का भाषण होना चाहिए था? यदि आप में जरा भी देशभक्ति का जज्बा बचा होगा तो कदापि इस बात से आप भी सहमत नहीं होंगे। दुर्भाग्य है कि हमलोगों की नियति सी बन गई है कि हम व्यक्तिगत स्वार्थ की राजनीति को देश से बड़ा मानने लगे हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने 67वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने राष्ट्र के नाम संदेश में भी कहा कि ‘‘आधुनिक, प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष देश में संकीर्ण और सांप्रदायिक विचारधारा के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।’’ कि जगह यदि वे किश्तवार व भारत की सीमाओं की घटनाओं का जिक्र करते हुए पाकिस्तान को सीधे-सीधे जिम्मेवार ठहराते हुए उनको इस देश में सांप्रदायिक सदभाव को खराब करने के लिए यदि कसूरवार मानते हुए देश में पनप रहे ऐसे तत्वों को सावधान किये होते तो कुछ हद तक उनकी देशभक्ति पर मुझे भी विश्वास होता, परन्तु किसी पाकिस्तानी प्रायोजित सांप्रदायिक हरकतों को नजरअंदाज कर दूसरे समुदाय को धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देना या उनको ही हर घटना के लिए कसूरवार मानना धर्मनिरपेक्षता नहीं हो सकती। धर्मनिरपेक्षता को कायम रखना सभी पक्षों की ज़िम्मेदारी है। मुसलमानों के उग्रवाद को धर्मनिरपेक्ष कहना व उसके प्रतिफल को सांप्रदायिकता यह किसी को भी स्वीकार नहीं।

आज देश उस चौराहे पर खड़ा है जहां एक तरफ बांग्लादेशी मुसलमानों को भारत में खुलआम देश के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में प्रवेश की आजादी दे दी गई व उनको भारतीय राजनीति में जगह दिया जाना तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी प्रायोजित आतंकवाद भारत में अपनी जड़ें मजबूत करता जा रहा है। तीसरी तरफ पाकिस्तानी समर्थक भारतीय मुसलमानों के कई सक्रिय दल भारत की धरती पर रहकर भारत के खिलाफ साज़िश कर भारतीय मुसलमानों के मन में भारतीयता के विरूद्ध वगावत के बीज पैदा करना। और चौथी तरफ देश की परवाह ना करते हुए हम धर्मनिरपेक्षता की आड़ में इनकी सभी हरकतों से खुद को किनारा करते पाये जाना। यदि ऐसी स्थिति पर देश के राजनेतागण आदि अपनी राजनीति स्वार्थ को त्यागकर देश के लिए कुछ कर पायें तो अच्छा होगा।

1 विचार मंच:

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पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही लिखा है !!

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